ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
|
|
(२ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ४ अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति १: |
पंक्ति १: |
− | {{menu}}<br /> | + | {{menu}} |
| <table class="gita" width="100%" align="left"> | | <table class="gita" width="100%" align="left"> |
| <tr> | | <tr> |
पंक्ति ३५: |
पंक्ति ३५: |
| |- | | |- |
| | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | | | | style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" | |
− | य: = जो ; पुमान् = पुरूष ; सर्वान् = संपूर्ण ; कामान् = कामनाओंको ; विहाय = त्यागकर ; निर्मम: = ममतारहित (और) ; निरहंकार: = अहंकाररहित ; नि:स्पृह: = स्पृहारहित हुआ ; चरति = बर्तता है ; स: = वह ; शान्तिम् = शान्तिको ; अधिगच्छति = प्राप्त होता है | + | य: = जो ; पुमान् = पुरुष ; सर्वान् = संपूर्ण ; कामान् = कामनाओंको ; विहाय = त्यागकर ; निर्मम: = ममतारहित (और) ; निरहंकार: = अहंकाररहित ; नि:स्पृह: = स्पृहारहित हुआ ; चरति = बर्तता है ; स: = वह ; शान्तिम् = शान्तिको ; अधिगच्छति = प्राप्त होता है |
| |- | | |- |
| |} | | |} |
पंक्ति ५५: |
पंक्ति ५५: |
| <td> | | <td> |
| {{गीता अध्याय}} | | {{गीता अध्याय}} |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | <tr> |
| + | <td> |
| + | {{गीता2}} |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | <tr> |
| + | <td> |
| + | {{महाभारत}} |
| </td> | | </td> |
| </tr> | | </tr> |
| </table> | | </table> |
− | [[category:गीता]] | + | [[Category:गीता]] |
| __INDEX__ | | __INDEX__ |
१२:३५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-71 / Gita Chapter-2 Verse-71
प्रसंग-
इस प्रकार <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के चारों प्रश्नों का उत्तर देने के अनन्तर अब स्थितप्रज्ञ पुरुष महत्व बतलाते हुए इस अध्याय का उपसंहार करते हैं-
विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह ।
निर्ममो निरहंकार स शान्तिमधिगच्छति ।।71।।
|
जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममतारहित, अहंकार रहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है वही शान्ति को प्राप्त होता है अर्थात् वह शान्ति को प्राप्त है ।।71।।
|
He who has given up all desires, and moves free from attachment, agoism and thirst for enjoyment attains peace.(71)
|
य: = जो ; पुमान् = पुरुष ; सर्वान् = संपूर्ण ; कामान् = कामनाओंको ; विहाय = त्यागकर ; निर्मम: = ममतारहित (और) ; निरहंकार: = अहंकाररहित ; नि:स्पृह: = स्पृहारहित हुआ ; चरति = बर्तता है ; स: = वह ; शान्तिम् = शान्तिको ; अधिगच्छति = प्राप्त होता है
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|
|
महाभारत |
---|
| महाभारत संदर्भ | | | | महाभारत के पर्व | |
|
|