"गीता 2:8" के अवतरणों में अंतर
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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− | इसके बाद | + | इसके बाद <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ने क्या किया, यह बतलाया जाता है- | ||
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+ | <div align="center"> | ||
− | + | '''न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्'''<br/> | |
− | + | '''यचछोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम् ।'''<br/> | |
+ | '''अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धं '''<br/> | ||
+ | '''राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्।।8।।''' | ||
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− | क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य | + | क्योंकि भूमि में निष्कण्टक, धन-धान्य संपन्न राज्य को और देवताओं के स्वामीपन को प्राप्त होकर भी मैं उस उपाय को नहीं देखता हूँ, जो मेरी इन्द्रियों के सुखाने वाले शोक को दूर कर सके ।।8।। |
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− | हि = क्योंकि ; भूमौ = भूमिमें ; असपन्तम् = निष्कण्टक ; ऋद्धम् = | + | हि = क्योंकि ; भूमौ = भूमिमें ; असपन्तम् = निष्कण्टक ; ऋद्धम् = धनधान्य संपन्न ; राज्यम् = राज्यको ; च = और ; सुराणाम् = देवताओंके ; आधिपत्यम् = स्वामीपनेको ; अवाप्य = प्राप्त होकर ; अपि = भी (मैं) ; (तत्) ; उस (उपाय) को ; न = नहीं ; प्रपश्यामि = देखता हूं ; यत् = जो कि ; मम = मेरी ; इन्द्रियाणाम् = इन्द्रियोंकि ; उच्छोषणम् = सुखानेवाले ; शोकम् ; शोकको ; अपनुद्यात् ; दूर कर सके ; |
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१२:३५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-2 श्लोक-8 / Gita Chapter-2 Verse-8
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