ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
|
|
पंक्ति ५१: |
पंक्ति ५१: |
| <td> | | <td> |
| {{गीता अध्याय}} | | {{गीता अध्याय}} |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | <tr> |
| + | <td> |
| + | {{महाभारत}} |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | <tr> |
| + | <td> |
| + | {{गीता2}} |
| </td> | | </td> |
| </tr> | | </tr> |
०८:१५, १९ मार्च २०१० का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-13 / Gita Chapter-6 Verse-13
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिर: ।
संप्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ।।13।।
|
काया, सिर और गले को समान एवं अचल धारण करके और स्थिर होकर, अपनी नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमा कर, अन्य दिशाओं को न देखता हुआ- ।।13।।
|
Holding the trunk, head and neck straight and steady, remaining firm and fixing the gaze on the tip of his nose, without looking in other direction. (13)
|
कायशिरोग्रीवम् = काया शिर और ग्रीवा को;समम् = समान; च =और अचलम् = अचल; धारयन् =धारण किये हुए; स्थिर: = दृढ़ (होकर); स्वम् = अपने; नासिकाग्रम् = नासिका के अग्रभाग को; संप्रेक्ष्य =देखकर; दिश: = अन्य दिशाओं को; अनवलोकयन् = न देखता हुआ;
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|
महाभारत |
---|
| महाभारत संदर्भ | | | | महाभारत के पर्व | |
|
|
|