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१२:४५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-39 / Gita Chapter-6 Verse-39
प्रसंग-
<balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ने यह बात पूछी थी कि वह योग से विचलित हुआ साधक उभय भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता ? भगवान् अब उसका उत्तर देते हैं-
एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषत: ।
त्वदन्य: संशयस्यास्य छेत्ता न ह्रुपपद्यते ।।39।।
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हे <balloon link="index.php?title=कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">
श्रीकृष्ण</balloon> ! मेरे इस संशय को सम्पूर्ण रूप से छेदन करने के लिये आप ही योग्य हैं, क्योंकि आपके सिवा दूसरा इस संशय का छेदन करने वाला मिलना सम्भव नहीं है ।।39।।
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Krishna, it behoves you to slash this doubt of mine completely; for none other than you can be found, who can tear this doubt. (39)
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कृष्ण = हे कृष्ण ; मे = मेरे ; एतत् = इस ; संशयम् = संशय को ; अशेषत: = संपूर्णता से ; छेत्तुम् = छेदन करने के लिये (आप ही) ; अर्हसि = योग्य हैं ; हि = क्योंकि ; त्वदन्य: = आपके सिवाय दूसरा ; अस्य = इस ; संशयस्य = संशयका ; छेत्ता = छेदन करने वाला ; न उपपद्यते = मिलना संभव नहीं है
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