"गीता 6:7" के अवतरणों में अंतर
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− | मन-इन्द्रियों के सहित शरीर को वश में करने का फल परमात्मा की प्राप्ति बतलाया गया । अत: परमात्मा को प्राप्त हुए | + | मन-इन्द्रियों के सहित शरीर को वश में करने का फल परमात्मा की प्राप्ति बतलाया गया । अत: परमात्मा को प्राप्त हुए पुरुष के लक्षण जानने की इच्छा होने पर अब दो श्लोकों द्वारा उसके लक्षणों का वर्णन करते हुए उसकी प्रशंसा करते हैं- |
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− | सरदी-गरमी और सुख-दु:खादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ भली-भाँति शान्त हैं, ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले | + | सरदी-गरमी और सुख-दु:खादि में तथा मान और अपमान में जिसके अन्त:करण की वृत्तियाँ भली-भाँति शान्त हैं, ऐसे स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के ज्ञान में सच्चिदानन्दघन परमात्मा के सिवा अन्य कुछ है ही नहीं ।।7।। |
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− | शीतोष्ण सुखद: खेषु = सर्दी गर्मी और सुख दु:खादि को में; मानपमानयो: = मान और आपमान में; प्रशान्तस्य = जिस के अन्त:करण की वृत्तियां अच्छी प्रकार शान्त हैं अर्थात् विकार रहित है (ऐसे); जितात्मन: = स्वाधीन आत्मा वाले | + | शीतोष्ण सुखद: खेषु = सर्दी गर्मी और सुख दु:खादि को में; मानपमानयो: = मान और आपमान में; प्रशान्तस्य = जिस के अन्त:करण की वृत्तियां अच्छी प्रकार शान्त हैं अर्थात् विकार रहित है (ऐसे); जितात्मन: = स्वाधीन आत्मा वाले पुरुष के (ज्ञान में); परमात्मा = सच्चिदानन्द धन परमात्मा; समाहित: = सम्यक प्रकार से स्थित है अर्थात् उसके ज्ञान में परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ है ही नहीं; |
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१२:४६, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-6 श्लोक-7 / Gita Chapter-6 Verse-7
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