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− | तत: परं सूर्यतीर्थं | + | तत: परं सूर्यतीर्थं सर्वपापविमोचनम्।<br /> |
− | विरोचनेन बलिना सूर्य्यस्त्वाराधित: | + | विरोचनेन बलिना सूर्य्यस्त्वाराधित: पुरा।।<br /> |
− | आदित्येऽहनि संक्रान्तौ ग्रहणे चन्द्रसूर्य्ययो: ।<br /> | + | आदित्येऽहनि संक्रान्तौ ग्रहणे चन्द्रसूर्य्ययो:।<br /> |
− | तस्मिन् स्नातो नरो देवि ! राजसूयफलं | + | तस्मिन् स्नातो नरो देवि ! राजसूयफलं लभेत्।। <ref>आदिवराह पुराण</ref> |
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१३:१०, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण
सूर्य तीर्थ / Surya Tirth
तत: परं सूर्यतीर्थं सर्वपापविमोचनम्।
विरोचनेन बलिना सूर्य्यस्त्वाराधित: पुरा।।
आदित्येऽहनि संक्रान्तौ ग्रहणे चन्द्रसूर्य्ययो:।
तस्मिन् स्नातो नरो देवि ! राजसूयफलं लभेत्।। [१]
विरोचन के पुत्र महाराज बलि ने यहाँ सूर्यदेव की आराधना कर मनोवाच्छित फल की प्राप्ति की थी क्योंकि सूर्यदेव अपनी द्वादश कलाओं के साथ यहाँ अपने आराध्यदेव श्री कृष्ण की आराधना में तत्पर रहते हैं। यहाँ रविवार, संक्रान्ति, सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के योग में स्नान करने से राजसूर्य यज्ञ का फल प्राप्त होता है। तथा मुक्ति होने पर भगवद् धाम की प्राप्ति होती है। पास ही में बलि महाराज का टीला है। जहाँ श्रीमन्दिर में बलि महाराज और उनके आराध्य श्रीवामनदेव का दर्शन है।
टीका-टिपण्णी
- ↑ आदिवराह पुराण