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==सेतुबन्ध रामेश्वर कुण्ड / Setubandh Rameshwar Kund==  
 
==सेतुबन्ध रामेश्वर कुण्ड / Setubandh Rameshwar Kund==  
श्री [[कृष्ण]] ने यहाँ पर श्री [[राम]] के आवेश में [[गोपी|गोपियों]] के कहने से बंदरों के द्वारा सेतु का निर्माण किया था । अभी भी इस सरोवर में सेतु बन्ध के भग्नावशेष दर्शनीय हैं । कुण्ड के उत्तर में रामेश्वर महादेव जी दर्शनीय हैं । जो श्री राम वेशी श्री कृष्ण के द्वारा प्रतिष्ठित हुए थे । कुण्ड के दक्षिण में उस पार एक टीले के रूप में [[लंका|लंकापुरी]] भी दर्शनीय है ।
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श्री [[कृष्ण]] ने यहाँ पर श्री [[राम]] के आवेश में [[गोपी|गोपियों]] के कहने से बंदरों के द्वारा सेतु का निर्माण किया था। अभी भी इस सरोवर में सेतु बन्ध के भग्नावशेष दर्शनीय हैं। कुण्ड के उत्तर में रामेश्वर महादेव जी दर्शनीय हैं। जो श्री राम वेशी श्री कृष्ण के द्वारा प्रतिष्ठित हुए थे। कुण्ड के दक्षिण में उस पार एक टीले के रूप में [[लंका|लंकापुरी]] भी दर्शनीय है।
  
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श्री कृष्ण लीला के समय परम कौतुकी श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर विनोदिनी श्री [[राधा|राधिका]] के साथ हास्य–परिहास कर रहे थे । उस समय इनकी रूप माधुरी से आकृष्ट होकर आस पास के सारे बंदर पेड़ों से नीचे उतरकर उनके चरणों में प्रणाम कर किलकारियाँ मार कर नाचने–कूदने लगे । बहुत से बंदर कुण्ड के दक्षिण तट के वृक्षों से लम्बी छलांग मारकर उनके चरणों के समीप पहुँचे । भगवान श्री कृष्ण उन बंदरों की वीरता की प्रशंसा करने लगे । गोपियाँ भी इस आश्चर्यजनक लीला को देखकर मुग्ध हो गई । वे भी भगवान श्री [[राम]]चन्द्र की अद्भुत लीलाओं का वर्णन करते हुए कहने लगीं कि श्री रामचन्द्र जी ने भी बंदरों की सहायता ली थी । उस समय ललिता जी ने कहा– 'हमने सुना है कि महापराक्रमी [[हनुमान]] जी ने [[त्रेता युग]] में एक छलांग में समुद्र को पार कर लिया था । परन्तु आज तो हम साक्षात रूप में बंदरों को इस सरोवर को एक छलांग में पार करते हुए देख रही हैं ।'  
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श्री कृष्ण लीला के समय परम कौतुकी श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर विनोदिनी श्री [[राधा|राधिका]] के साथ हास्य–परिहास कर रहे थे। उस समय इनकी रूप माधुरी से आकृष्ट होकर आस पास के सारे बंदर पेड़ों से नीचे उतरकर उनके चरणों में प्रणाम कर किलकारियाँ मार कर नाचने–कूदने लगे। बहुत से बंदर कुण्ड के दक्षिण तट के वृक्षों से लम्बी छलांग मारकर उनके चरणों के समीप पहुँचे। भगवान श्री कृष्ण उन बंदरों की वीरता की प्रशंसा करने लगे। गोपियाँ भी इस आश्चर्यजनक लीला को देखकर मुग्ध हो गई। वे भी भगवान श्री रामचन्द्र की अद्भुत लीलाओं का वर्णन करते हुए कहने लगीं कि श्री रामचन्द्र जी ने भी बंदरों की सहायता ली थी। उस समय [[ललिता]] जी ने कहा– 'हमने सुना है कि महापराक्रमी [[हनुमान]] जी ने [[त्रेता युग]] में एक छलांग में समुद्र को पार कर लिया था। परन्तु आज तो हम साक्षात रूप में बंदरों को इस सरोवर को एक छलांग में पार करते हुए देख रही हैं।'  
 
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ऐसा सुनकर [[कृष्ण]] ने गर्व करते हुए कहा– जानती हो ! मैं ही [[त्रेता युग]] में श्री राम था मैंने ही राम रूप में सारी लीलाएँ की थी ।
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ऐसा सुनकर [[कृष्ण]] ने गर्व करते हुए कहा– जानती हो! मैं ही [[त्रेता युग]] में श्री राम था मैंने ही राम रूप में सारी लीलाएँ की थी।
ललिता श्री रामचन्द्र की अद्भुत लीलाओं की प्रशंसा करती हुई बोलीं– तुम झूठे हो । तुम कदापि राम नहीं थे । तुम्हारे लिए कदापि वैसी वीरता सम्भव नहीं । श्री कृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा– तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है, किन्तु मैंने ही राम रूप धारण कर [[जनकपुरी]] में [[शिव]] धनुष को तोड़कर [[सीता]] से विवाह किया था । पिता के आदेश से धनुष बाण धारण कर सीता और [[लक्ष्मण]] के साथ [[चित्रकूट]] और [[दण्डकारण्य]] में भ्रमण किया तथा वहाँ अत्याचारी दैत्यों का विनाश किया । फिर सीता के वियोग में वन–वन भटका । पुन: बन्दरों की सहायता से [[रावण]] सहित लंकापुरी का ध्वंसकर [[अयोध्या]] में लौटा । मैं इस समय गोपालन के द्वारा वंशी धारण कर गोचारण करते हुए वन–वन में भ्रमण करता हुआ प्रियतमा श्री राधिका के साथ तुम गोपियों से विनोद कर रहा हूँ । पहले मेरे राम रूप में धनुष–बाणों से त्रिलोकी काँप उठती थी । किन्तु, अब मेरे मधुर वेणुनाद से स्थावर–जग्ङम सभी प्राणी उन्मत्त हो रहे हैं ।
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ललिता श्री रामचन्द्र की अद्भुत लीलाओं की प्रशंसा करती हुई बोलीं– तुम झूठे हो। तुम कदापि राम नहीं थे। तुम्हारे लिए कदापि वैसी वीरता सम्भव नहीं। श्री कृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा– तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है, किन्तु मैंने ही राम रूप धारण कर [[जनकपुरी]] में [[शिव]] धनुष को तोड़कर [[सीता]] से विवाह किया था। पिता के आदेश से धनुष बाण धारण कर सीता और [[लक्ष्मण]] के साथ [[चित्रकूट]] और [[दण्डकारण्य]] में भ्रमण किया तथा वहाँ अत्याचारी दैत्यों का विनाश किया। फिर सीता के वियोग में वन–वन भटका। पुन: बन्दरों की सहायता से [[रावण]] सहित लंकापुरी का ध्वंसकर [[अयोध्या]] में लौटा। मैं इस समय गोपालन के द्वारा वंशी धारण कर गोचारण करते हुए वन–वन में भ्रमण करता हुआ प्रियतमा श्री राधिका के साथ तुम गोपियों से विनोद कर रहा हूँ। पहले मेरे राम रूप में धनुष–बाणों से त्रिलोकी काँप उठती थी। किन्तु, अब मेरे मधुर वेणुनाद से स्थावर–जग्ङम सभी प्राणी उन्मत्त हो रहे हैं।
 
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ललिता जी ने भी मुस्कराते हुए कहा–हम केवल कोरी बातों से ही विश्वास नहीं कर सकतीं । यदि श्री राम जैसा कुछ पराक्रम दिखा सको तो हम विश्वास कर सकती हैं । श्री रामचन्द्र जी सौ योजन समुद्र को भालू–कपियों के द्वारा बंधवा कर सारी सेना के साथ उस पार गये थे । आप इन बंदरों के द्वारा इस छोटे से सरोवर पर पुल बँधवा दें तो हम विश्वास कर सकती हैं । ललिता की बात सुनकर श्री कृष्ण ने वेणू–ध्वनि के द्वारा क्षण-मात्र में सभी बंदरों को एकत्र कर लिया तथा उन्हें प्रस्तर शिलाओं के द्वारा उस सरोवर के ऊपर सेतु बाँधने के लिए आदेश दिया । देखते ही देखते श्री कृष्ण के आदेश से हजारों बंदर बड़ी उत्सुकता के साथ दूर -दूर स्थानों से पत्थरों को लाकर सेतु निर्माण में लग गये । श्री कृष्ण ने अपने हाथों से उन बंदरों के द्वारा लाये हुए उन पत्थरों के द्वारा सेतु का निर्माण किया । सेतु के प्रारम्भ में सरोवर की उत्तर दिशा में श्री कृष्ण ने अपने रामेश्वर महादेव की स्थापना भी की । आज भी ये सभी लीलास्थान दर्शनीय हैं । इस कुण्ड का नामान्तर लंका कुण्ड भी है ।
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ललिता जी ने भी मुस्कराते हुए कहा–हम केवल कोरी बातों से ही विश्वास नहीं कर सकतीं। यदि श्री राम जैसा कुछ पराक्रम दिखा सको तो हम विश्वास कर सकती हैं। श्री रामचन्द्र जी सौ [[योजन]] समुद्र को भालू–कपियों के द्वारा बंधवा कर सारी सेना के साथ उस पार गये थे। आप इन बंदरों के द्वारा इस छोटे से सरोवर पर पुल बँधवा दें तो हम विश्वास कर सकती हैं। ललिता की बात सुनकर श्री कृष्ण ने वेणू–ध्वनि के द्वारा क्षण-मात्र में सभी बंदरों को एकत्र कर लिया तथा उन्हें प्रस्तर शिलाओं के द्वारा उस सरोवर के ऊपर सेतु बाँधने के लिए आदेश दिया। देखते ही देखते श्री कृष्ण के आदेश से हज़ारों बंदर बड़ी उत्सुकता के साथ दूर -दूर स्थानों से पत्थरों को लाकर सेतु निर्माण में लग गये। श्री कृष्ण ने अपने हाथों से उन बंदरों के द्वारा लाये हुए उन पत्थरों के द्वारा सेतु का निर्माण किया। सेतु के प्रारम्भ में सरोवर की उत्तर दिशा में श्री कृष्ण ने अपने रामेश्वर महादेव की स्थापना भी की। आज भी ये सभी लीलास्थान दर्शनीय हैं। इस कुण्ड का नामान्तर लंका कुण्ड भी है।
  
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१२:५२, ५ जुलाई २०१० के समय का अवतरण

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सेतुबन्ध रामेश्वर कुण्ड / Setubandh Rameshwar Kund

श्री कृष्ण ने यहाँ पर श्री राम के आवेश में गोपियों के कहने से बंदरों के द्वारा सेतु का निर्माण किया था। अभी भी इस सरोवर में सेतु बन्ध के भग्नावशेष दर्शनीय हैं। कुण्ड के उत्तर में रामेश्वर महादेव जी दर्शनीय हैं। जो श्री राम वेशी श्री कृष्ण के द्वारा प्रतिष्ठित हुए थे। कुण्ड के दक्षिण में उस पार एक टीले के रूप में लंकापुरी भी दर्शनीय है।

प्रसंग

श्री कृष्ण लीला के समय परम कौतुकी श्री कृष्ण इसी कुण्ड के उत्तरी तट पर गोपियों के साथ वृक्षों की छाया में बैठकर विनोदिनी श्री राधिका के साथ हास्य–परिहास कर रहे थे। उस समय इनकी रूप माधुरी से आकृष्ट होकर आस पास के सारे बंदर पेड़ों से नीचे उतरकर उनके चरणों में प्रणाम कर किलकारियाँ मार कर नाचने–कूदने लगे। बहुत से बंदर कुण्ड के दक्षिण तट के वृक्षों से लम्बी छलांग मारकर उनके चरणों के समीप पहुँचे। भगवान श्री कृष्ण उन बंदरों की वीरता की प्रशंसा करने लगे। गोपियाँ भी इस आश्चर्यजनक लीला को देखकर मुग्ध हो गई। वे भी भगवान श्री रामचन्द्र की अद्भुत लीलाओं का वर्णन करते हुए कहने लगीं कि श्री रामचन्द्र जी ने भी बंदरों की सहायता ली थी। उस समय ललिता जी ने कहा– 'हमने सुना है कि महापराक्रमी हनुमान जी ने त्रेता युग में एक छलांग में समुद्र को पार कर लिया था। परन्तु आज तो हम साक्षात रूप में बंदरों को इस सरोवर को एक छलांग में पार करते हुए देख रही हैं।'


ऐसा सुनकर कृष्ण ने गर्व करते हुए कहा– जानती हो! मैं ही त्रेता युग में श्री राम था मैंने ही राम रूप में सारी लीलाएँ की थी। ललिता श्री रामचन्द्र की अद्भुत लीलाओं की प्रशंसा करती हुई बोलीं– तुम झूठे हो। तुम कदापि राम नहीं थे। तुम्हारे लिए कदापि वैसी वीरता सम्भव नहीं। श्री कृष्ण ने मुस्कराते हुए कहा– तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है, किन्तु मैंने ही राम रूप धारण कर जनकपुरी में शिव धनुष को तोड़कर सीता से विवाह किया था। पिता के आदेश से धनुष बाण धारण कर सीता और लक्ष्मण के साथ चित्रकूट और दण्डकारण्य में भ्रमण किया तथा वहाँ अत्याचारी दैत्यों का विनाश किया। फिर सीता के वियोग में वन–वन भटका। पुन: बन्दरों की सहायता से रावण सहित लंकापुरी का ध्वंसकर अयोध्या में लौटा। मैं इस समय गोपालन के द्वारा वंशी धारण कर गोचारण करते हुए वन–वन में भ्रमण करता हुआ प्रियतमा श्री राधिका के साथ तुम गोपियों से विनोद कर रहा हूँ। पहले मेरे राम रूप में धनुष–बाणों से त्रिलोकी काँप उठती थी। किन्तु, अब मेरे मधुर वेणुनाद से स्थावर–जग्ङम सभी प्राणी उन्मत्त हो रहे हैं।


ललिता जी ने भी मुस्कराते हुए कहा–हम केवल कोरी बातों से ही विश्वास नहीं कर सकतीं। यदि श्री राम जैसा कुछ पराक्रम दिखा सको तो हम विश्वास कर सकती हैं। श्री रामचन्द्र जी सौ योजन समुद्र को भालू–कपियों के द्वारा बंधवा कर सारी सेना के साथ उस पार गये थे। आप इन बंदरों के द्वारा इस छोटे से सरोवर पर पुल बँधवा दें तो हम विश्वास कर सकती हैं। ललिता की बात सुनकर श्री कृष्ण ने वेणू–ध्वनि के द्वारा क्षण-मात्र में सभी बंदरों को एकत्र कर लिया तथा उन्हें प्रस्तर शिलाओं के द्वारा उस सरोवर के ऊपर सेतु बाँधने के लिए आदेश दिया। देखते ही देखते श्री कृष्ण के आदेश से हज़ारों बंदर बड़ी उत्सुकता के साथ दूर -दूर स्थानों से पत्थरों को लाकर सेतु निर्माण में लग गये। श्री कृष्ण ने अपने हाथों से उन बंदरों के द्वारा लाये हुए उन पत्थरों के द्वारा सेतु का निर्माण किया। सेतु के प्रारम्भ में सरोवर की उत्तर दिशा में श्री कृष्ण ने अपने रामेश्वर महादेव की स्थापना भी की। आज भी ये सभी लीलास्थान दर्शनीय हैं। इस कुण्ड का नामान्तर लंका कुण्ड भी है।

सम्बंधित लिंक

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