ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ
खोज पर जाएँ
गीता अध्याय-11 श्लोक-24 / Gita Chapter-11 Verse-24
नभ:स्पृशं दीप्तमनेकवर्णं
व्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम् ।
दृष्ट्वा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा
धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ।।24।।
|
क्योंकि हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, विष्णो, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">विष्णो</balloon> ! आकाश को स्पर्श करने वाले, देदीप्यमान, अनेक वर्णों से युक्त तथा फैलाये हुए मुख और प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त आपको देखकर भयभीत अन्त:करण वाला मैं धीरज और शान्ति नहीं पाता हूँ ।।24।।
|
Lord, seeing your form reaching the heavens, effulgent, multi-coloured, having its mouth wide open and possessing large flaming eyes, I, with my inmost self frightened, have lost self-control and find no peace. (24)
|
हि = क्योंकि; विष्णो ; नभ:स्पृशम् = आकाश के साथ स्पर्श किये हुए; दीप्तम् = देदीप्यमान; अनेकवर्णम् = अनेक रूपों से युक्त; व्यात्ताननम् = फैलाये हुए मुख(और); दीप्तविशालनेत्रम् = प्रकाशमान विशाल नेत्रों से युक्त; त्वाम् = आपको; दृष्टा = देखकर; प्रव्यथकतान्तरात्मा = भयभीत अन्त:करणवाला(मैं); धृतिम् = धीरज; शमम् = शान्तकिो; विन्दामि = प्राप्त होता हूं
|
|
|
|
<sidebar>
- सुस्वागतम्
- mainpage|मुखपृष्ठ
- ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
- विशेष:Contact|संपर्क
- समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
- SEARCH
- LANGUAGES
__NORICHEDITOR__
- गीता अध्याय-Gita Chapters
- गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
- गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
- गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
- गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
- गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
- गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
- गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
- गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
- गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
- गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
- गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
- गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
- गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
- गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
- गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
- गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
- गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
- गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter
</sidebar>
|
|
महाभारत |
---|
| महाभारत संदर्भ | |  | | महाभारत के पर्व | |
|
|