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गीता अध्याय-11 श्लोक-13 / Gita Chapter-11 Verse-13
प्रसंग-
भगवान् के उस प्रकाशमय अद्भुत स्वरूप में अर्जुन ने सारे विश्व को किस प्रकार देखा, अब यह बतलाया जाता है-
तत्रैकस्थं जगत्कृत्स्नं प्रविभक्तमनेकधा ।
अपश्यद्देवदेवस्य शरीरे पाण्डवस्तदा ।।13।।
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<balloon link="index.php?title=पाण्डु" title="पाण्डु हस्तिनापुर के राजा और धृतराष्ट्र के भाई थे । ये पाँडवों के पिता थे।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">पाण्डु</balloon> पुत्र <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ने उस समय अनेक प्रकार से विभक्त अर्थात् पृथक्-पृथक् सम्पूर्ण जगत् को देवों के देव <balloon link="index.php?title=कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">श्रीकृष्ण</balloon> भगवान् के उस शरीर में एक जगह स्थित देखा ।।13।।
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Concentrated at one place in the person of that supreme deity, Arjuna then beheld the whole universe with its manifold divisions. (13)
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पाण्डव: = पाण्डुपुत्र अर्जुनने; तदा = उस कालमें; अनेकधा = अनेक प्रकारसे; प्रविभक्तम् = विभक्त हुए अर्थात् पृथक् पृथक् हुए; कृत्स्त्रम् = संपूर्ण; तत्र = उस; देवदेवस्य; देवों के देव श्रीकृष्ण भगवान् के; शरीरे = शरीरमें; एकस्थम् = एक जगह स्थित; अपश्यत् = देखा
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