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०८:४०, ५ जनवरी २०१० का अवतरण

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गीता अध्याय-11 श्लोक-54 / Gita Chapter-11 Verse-54

प्रसंग-


यदि उपर्युक्त उपायों से आपके दर्शन नहीं हो सकते तो किस उपाय से हो सकते हैं, ऐसी जिज्ञासा होने पर भगवान् कहते हैं-


भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवं विधोऽर्जुन ।
ज्ञातु द्रष्टुं च तत्त्वेन प्रवेष्टुं च परंतप ।।54।।



परन्तु हे परंतप <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! अनन्य भक्ति के द्वारा इस प्रकार चतुर्भुज रूप वाला मैं प्रत्यक्ष देखने के लिये, तत्व से जानने के लिये तथा प्रवेश करने के लिये अर्थात् एकीभाव से प्राप्त होने के लिये भी शक्य हूँ ।।54।।

Through single-minded devotion, however, I can be seen in this form (with four arms); nay, known in essence and even enetered into, O valiant Arjuna. (54)


परंतप = हे श्रेष्ठ तपवाले; भक्त्या = भक्ति करके; एवंविध: इस प्रकार चतुर्भुज रूपवाला; तत्त्वेन = तत्त्व से; ज्ञातुम् = जानने के लिये; प्रवेष्टुम = प्रवेश करने के लिये अर्थात् एकीभावसे प्राप्त होने के लिये; शंक्य: = शक्य हूं



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

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