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*[[शमी वृक्ष]] का पूजन [[रावण|रावण दहन]] के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय की कामना के साथ समृद्धि की कामना की इच्छा रहती है।<ref> विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।</ref> | *[[शमी वृक्ष]] का पूजन [[रावण|रावण दहन]] के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय की कामना के साथ समृद्धि की कामना की इच्छा रहती है।<ref> विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।</ref> |
१५:५०, १८ अगस्त २०१२ के समय का अवतरण
आश्विन शुक्ल दशमी अर्थात विजयदशमी पर शमी वृक्ष के पूजन का महत्व है।
- शमी वृक्ष का पूजन रावण दहन के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय की कामना के साथ समृद्धि की कामना की इच्छा रहती है।[१]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ विजयादशमी, अध्याय 10; स्मृतिकौस्तुभ (355)।
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