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− | '''अमी च त्वां | + | '''अमी च त्वां धृतराट्रस्य पुत्रा:'''<br/> |
− | '''भीष्मो द्रोण: सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यै: ।।26।।'''<br/> | + | '''सर्वे सहैवावनिपालसंघै: ।'''<br/> |
− | '''वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति | + | '''भीष्मो द्रोण: सूतपुत्रस्तथासौ'''<br/> |
− | '''केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते | + | '''सहास्मदीयैरपि योधमुख्यै: ।।26।।'''<br/> |
− | </div> | + | '''वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति'''<br/> |
+ | '''दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।'''<br/> | ||
+ | '''केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु'''<br/> | ||
+ | '''संदृश्यन्ते चूर्णितैरूत्तमांग्ङै: ।।27।।''' | ||
+ | </div> | ||
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− | वे सभी | + | वे सभी <balloon link="index.php?title=धृतराष्ट्र" title="धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे । गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र । पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">धृतराष्ट्र</balloon> के पुत्र राजाओं के समुदाय सहित आपमें प्रवेश कर रहे हैं और <balloon link="index.php?title=भीष्म" title="भीष्म महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक हैं । ये महाराजा शांतनु के पुत्र थे । अपने पिता को दिये गये वचन के कारण इन्होंनें आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था । इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">भीष्म</balloon> पितामह, <balloon link="index.php?title=द्रोणाचार्य" title="द्रोणाचार्य कौरव और पांडवो के गुरु थे । कौरवों और पांडवों ने द्रोणाचार्य के आश्रम मे ही अस्त्रों और शस्त्रों की शिक्षा पायी थी । अर्जुन द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">द्रोणाचार्य</balloon> तथा वह <balloon link="index.php?title=कर्ण " title="कर्ण कुन्ती व सूर्यदेव के पुत्र थे । एक अत्यन्त पराक्रमी तथा दानशील पुरुष । |
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">कर्ण</balloon> और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धाओं के सहित सब के सब आपके दाढ़ों के कारण विकराल भयानक मुखों में बड़े वेग से दौड़ते हुए प्रवेश कर रहे हैं और कई एक चूर्ण हुए सिरों सहित आपके दाँतों के बीच में लगे हुए दिख रहे हैं ।।26-27।। | ||
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | | style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"| | ||
− | All those sons of Dhrtarastra with hosts of kings are entering you. | + | All those sons of Dhrtarastra with hosts of kings are entering you. Bhisma, Drona and yonder Karna, with the principal warriors on our side as well, are rushing headlong into your fearful mouths looking all the more terrible on account of their teeth; some are seen stuck up in the gaps between your teeth with their heads crushed. (26,27) |
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१२:१५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-26, 27 / Gita Chapter-11 Verse-26, 27
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