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− | पूर्व श्लोक में जो 'स्थाने' पद का प्रयोग करके सिद्ध समुदायों का नमस्कार आदि करना उचित बतलाया गया था, अब चार श्लोकों में भगवान् के प्रभाव का वर्णन करके उसी बात को सिद्ध करते हुए | + | पूर्व श्लोक में जो 'स्थाने' पद का प्रयोग करके सिद्ध समुदायों का नमस्कार आदि करना उचित बतलाया गया था, अब चार श्लोकों में भगवान् के प्रभाव का वर्णन करके उसी बात को सिद्ध करते हुए <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। |
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+ | अर्जुन</balloon> के बार-बार नमस्कार करने का भाव दिखलाते हैं- | ||
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− | हे महात्मन् ! | + | हे महात्मन् ! <balloon link="index.php?title=ब्रह्मा " title="सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं |
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+ | शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं। | ||
+ | ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">ब्रह्मा</balloon> के भी आदि कर्ता और सबसे बड़े आपके लिये ये कैसे नमस्कार न करे; क्योंकि हे अनन्त ! हे देवेश ! हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, देवेश, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जगन्निवास, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">जगन्निवास</balloon> ! जो सत्, असत् और उनसे परे अक्षर अर्थात् सच्चिदानन्दघन ब्रह्म है, वह आप ही हैं ।।37।। | ||
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१२:१५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-37 / Gita Chapter-11 Verse-37
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