"गीता 11:38" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
(नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> <table class="gita" width="100%" align="left"> <tr> <td> ==गीता अध्याय-11 श्लोक-38 / Gita Chapter-11 Verse-38== {| width="80...)
 
छो (Text replace - '<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>' to '<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>')
 
(४ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ७ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{menu}}<br />
+
{{menu}}
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<table class="gita" width="100%" align="left">
 
<tr>
 
<tr>
पंक्ति ९: पंक्ति ९:
 
----
 
----
 
<div align="center">
 
<div align="center">
'''त्वामादिदेव: पुरूष: पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।'''<br/>
+
'''त्वामादिदेव: पुरुष: पुराण'''<br/>
'''वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।'''
+
'''स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।'''<br/>
 +
'''वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम'''<br/>
 +
'''त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।'''
 
</div>
 
</div>
 
----
 
----
पंक्ति २०: पंक्ति २२:
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
  
आप आदि देव और सनातन पुरूष हैं, आप इस जगत् के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परमधाम हैं । हे अनन्त रूप ! आपसे यह सब जगत् व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है ।।38।।  
+
आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं, आप इस जगत् के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परमधाम हैं । हे <balloon title="अनन्त रूप, मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">अनन्त रूप</balloon> ! आपसे यह सब जगत् व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है ।।38।।  
  
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
 
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
पंक्ति ३६: पंक्ति ३८:
 
</td>
 
</td>
 
</tr>
 
</tr>
</table>
+
<tr>
 +
<td>
 
<br />
 
<br />
 
<div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 11:37|<= पीछे Prev]] | [[गीता 11:39|आगे Next =>]]'''</div>  
 
<div align="center" style="font-size:120%;">'''[[गीता 11:37|<= पीछे Prev]] | [[गीता 11:39|आगे Next =>]]'''</div>  
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 
<br />
 
<br />
 
{{गीता अध्याय 11}}
 
{{गीता अध्याय 11}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 
{{गीता अध्याय}}
 
{{गीता अध्याय}}
[[category:गीता]]
+
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
{{गीता2}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
<tr>
 +
<td>
 +
{{महाभारत}}
 +
</td>
 +
</tr>
 +
</table>
 +
[[Category:गीता]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

१२:१५, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण

गीता अध्याय-11 श्लोक-38 / Gita Chapter-11 Verse-38


त्वामादिदेव: पुरुष: पुराण
स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।।38।।



आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं, आप इस जगत् के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परमधाम हैं । हे <balloon title="अनन्त रूप, मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">अनन्त रूप</balloon> ! आपसे यह सब जगत् व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है ।।38।।

You are the primal deity, the most ancient person; you are the ultimate resort of this universe. You are both the knower and the knowable, and the highest abode. It is you who pervade the universe, assuming endless forms. (38)


त्वम् = आप; पुराण: = सनातन; त्वम् = आप; विश्वस्य = जगत् के; निधानम् = आश्रय; वेत्ता = जाननेवाले(तथा); वेद्यम् = जाननेयोग्य; असि = हैं; त्वया = आपसे(यह सब); विश्वम् = जगत्; ततम् = व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__

  • गीता अध्याय-Gita Chapters
    • गीता 1:1|अध्याय [1] Chapter
    • गीता 2:1|अध्याय [2] Chapter
    • गीता 3:1|अध्याय [3] Chapter
    • गीता 4:1|अध्याय [4] Chapter
    • गीता 5:1|अध्याय [5] Chapter
    • गीता 6:1|अध्याय [6] Chapter
    • गीता 7:1|अध्याय [7] Chapter
    • गीता 8:1|अध्याय [8] Chapter
    • गीता 9:1|अध्याय [9] Chapter
    • गीता 10:1|अध्याय [10] Chapter
    • गीता 11:1|अध्याय [11] Chapter
    • गीता 12:1|अध्याय [12] Chapter
    • गीता 13:1|अध्याय [13] Chapter
    • गीता 14:1|अध्याय [14] Chapter
    • गीता 15:1|अध्याय [15] Chapter
    • गीता 16:1|अध्याय [16] Chapter
    • गीता 17:1|अध्याय [17] Chapter
    • गीता 18:1|अध्याय [18] Chapter

</sidebar>