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'''पितासि लोकस्य चराचरस्य'''<br/> | '''पितासि लोकस्य चराचरस्य'''<br/> | ||
− | '''त्वमस्य पूज्यश्च | + | '''त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् ।'''<br/> |
'''न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिक: कुतोऽन्यो'''<br/> | '''न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिक: कुतोऽन्यो'''<br/> | ||
'''लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ।।43।।''' | '''लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव ।।43।।''' | ||
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− | अस्य = इस; लोकस्य = जगत् के; च = और; गरीयान् = | + | अस्य = इस; लोकस्य = जगत् के; च = और; गरीयान् = गुरु से भी बड़े; पूज्य: = अति पूजनीय; अप्रतिमप्रभाव = हे अतिशय प्रभाववाले; लोकत्रये =तीनों लोकोंमें; त्वत्सम: = आपके समान; अपि = भी; अभ्यधिक: = अधिक; कुत: = कैसे होवे |
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१२:१६, २१ मार्च २०१० के समय का अवतरण
गीता अध्याय-11 श्लोक-43 / Gita Chapter-11 Verse-43
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